चरम सुख
चरम सुख
(छंदमुक्त काव्य)
दैहिक चरम सुख और ब्रह्मस्वरूप परमानन्द,
चिरत्व किसमें है…
वही बता सकेगा न भला
जिसने बारी बारी से
दोनों का अनुभव किया है ।
तुलना तो तब ही न हो सकती है_
जब दोनों पास मौजूद हो
और हम अपनी इन्द्रियों से
उसका तुलनात्मक अनुभव कर सकें।
क्या इहलोक में यह संभव है कि…
चरमसुख और परमानन्द दोनों
बारी बारी से प्राप्त किया जा सके..
हाँ यह बिल्कुल सम्भव है…
परंच परमानंद प्राप्ति के लिए
छठी इन्द्रिय का होना आवश्यक है,
जो वैराग्य और भक्ति की महत्ता को जान सके।
ध्यान से सोचे तो_
पहले में बस क्षणिक सुखानुभूति है
पर वो भी आत्मिक नहीं,
दूसरा अनंत आनंद स्वरूप ब्रह्म..!
अतुलनीय है दोनों…
किन्तु पहला इतना मायावी है कि,
दूसरे की तरफ जाने की अनुमति ही नहीं देता।
फिर शुरू होती है पुनःचक्रण की श्रृंखला
माया और प्रकृति,एक ही तो है दोनों…
बस क्रियाशील और शांत का फर्क है दोनों में,
घूमते रहो बारंबार
जड़ से चेतन में_
फिर चेतन से जड़ में_
आहुति देनें के लिए ये शरीर हैं न,
खोजते रहो चरमसुख….
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
©® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार (बिहार)