” चमड़ी “
मेघा के विवाह को तीन महीने ही हुये थे जो लोग विवाह में नही आ पाये थे वो भी आकर उसको देख कर चले गये । उस शाम सास – ससुर के दोस्त आने वाले थे सास ने सख्त हिदायत दी थी मेघा को ” नाश्ते की सारी तैयारी कर लो और तुम मत आना सीमा ( जिठानी ) परोस देगी । मेहमान आये मिलना – मिलाना , चाय – नाश्ता , हँसी – मज़ाक सब चलता रहा बाहर से ऑर्डर आता अंदर से मेघा पूरा कर बाहर भिजवाती , सबके जाने के बाद सास अंदर आईं और मेघा से बोलीं जाकर ड्राईंगरूम से जूठे बर्तन ले आओ….मेघा बर्तनों को समेट कर ला ही रही थी की ससुर जी से सास को कहते सुना अरे ! मैं भी क्या करूँ मजबूरी है इसका रंग गोरा होता तो मैं ना रोकती सामने आने को ये सुन मेघा के हाथ से ट्रे छूटते – छूटते बची…कमरे में आ दुखी मन से सोचने लगी पापा तो कहते थे ” मेरी इतनी पढ़ी – लिखी और हुनरमंद बेटी जहाँ जायेगी वहाँ रौशनी कर देगी ” कैसे बताये पापा को की आज तक हर बार जीतती आई उनकी बेटी अपनी चमड़ी से हार गई ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 23/09/2020 )