चमन क्यूँ है ये उलझन में…
चमन क्यों है ये उलझन में …..
न जाने तू न जानूँ में ।
बड़ा बेचैन सा मौसम बना है …
आज महफ़िल में ।।
चले हैं सब हमसफर बनकर …..
जलन क्यों होती है उनको ।
यूँ गलफत में फसे हैं हम ..
न जाने तू न जानूँ में ।।
चमन क्यों है ये उलझन में …
वो किस्से थे या फितरत थी ..
कहानी बन गए यूँ ही ।
न वो स्वीकार करते थे ..
क्यूँ स्वीकार कर लूं मैं ।।
चमन क्यों है ये उलझन में ….
वक्त वेवक्त यूँ ही में …..
सताया हूँ बेगाना मान ।
शिकायत करने को ही यूँ…..
बगावत क्यूँ करूँ उनसे ।।
चमन क्यों है ये उलझन में …
कहा था एक दिन उसने ..
जहाँ चाहे बुला लेना ।।
जिंदगी के सफर में मुझको ….
दे आवाज आजमा लेना .।।
चमन क्यों है ये उलझन में …
एक दिन यूँ भुला देंगे ..
हमें क्या ये थी खबर उसकी ।
बेगाना कोई भी हमको ..
इजहारे वफ़ा देता ।।
चमन क्यों है ये उलझन में …
वक्त वो भी गया अब तो ….
याद जब उनकी आती है ।
हमें क्या ये पता था यारो…..
निकल मैय्यत पे आएंगे ।।
चमन क्यों है ये उलझन में …
न जाने तू न जानूँ में ।
बड़ा बेचैन सा मौसम बना है ..
आज महफ़िल में ।।
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(C) राजकुमार सिंह “आघात” (C)
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