#चमत्कार
~जगजगती की ✍️
🚩 #चमत्कार 🚩
एक हौज़री, जहाँ ऊनी वस्त्र बनते हैं, वहाँ कई शिल्पी अर्थात कारीगर होते हैं और उन सब पर एक प्रधान शिल्पी हुआ करता है जिसे ‘मास्टरजी’ कहकर पुकारा जाता है।
सत्यघटनाओं पर आधारित हमारी आज की इस कथा का नायक भी हौज़री का प्रधान शिल्पी है, जिसका नाम मनीष सतीश अथवा हरीश जैसा कुछ है लेकिन, हम उसे महाशिल्पी कहेंगे।
एक दिन जब किसी कार्यवश महाशिल्पी हौज़री के कार्यालय में गए तब वहाँ हौज़री के स्वामी पन्ना सेठ, उनके कुछ मित्र और एक पंडित जी बैठे थे, जो कि वेशभूषा और तिलक के विशेष आकारप्रकार के कारण दक्षिण भारतीय जान पड़ते थे। महाशिल्पी महोदय के मन में विचार कौंधा कि वे लोग किसी निजी अथवा व्यक्तिगत विचारविमर्श में रत हैं, इसलिए वो लौटने लगे कि पन्ना सेठ ने पुकारा, “आइए महाशिल्पी।” और फिर पंडित जी से बोले, “पंडित जी, यह हमारे महाशिल्पी हैं। इनके संबंध में कुछ अच्छी-अच्छी भविष्यवाणी कीजिए।”
महाशिल्पी घोर नास्तिक थे। उन्होंने स्पष्ट कहा कि “मैं किसी भी पाखंड में विश्वास नहीं करता।”
पन्ना सेठ ने उन्हें बलपूर्वक बैठाते हुए पंडित जी से फिर अनुरोध किया कि “पंडित जी, कुछ ऐसा बताइए कि महाशिल्पी घोर नास्तिक से नैष्ठिक आस्तिक हो जाएं।”
पंडित जी ने कहा, “महाशिल्पी अपना अंगूठा दिखाइए।”
पंडित जी बड़ी-सी मेज़ के उस छोर पर और महाशिल्पी इस ओर बैठे थे। वहीं से महाशिल्पी ने मुट्ठी भींचते हुए अंगूठा दिखाया तो पंडित जी ने कहा, “पूछिए, क्या जानना चाहते हैं आप?”
“मुझे कुछ नहीं पूछना। आपको जो बताना है बता दीजिए।”
कुछ विपल अंगूठा निहारने के उपरांत पंडित जी ने आँखें मूंद लीं और फिर धीमे सुर में बोले, “जहाँ आपका विवाह हुआ वहाँ छह कन्याएं थीं. . .और, जहाँ आपके पिता का विवाह हुआ वहाँ भी छह कन्याएं थीं।”
पन्ना सेठ ने संकेत से पूछा कि “क्या यह सत्य है?”
महाशिल्पी मुस्कुराए।
पंडित जी फिर बोले, “आपकी पत्नी सुशिक्षित है”, वे हिंदी में प्रभाकर किए हुए थीं। महाशिल्पी फिर मुस्कुराए।
पंडित जी की आँखें अभी भी मुंदी हुई थीं। सब ओर शांति का विस्तार था। एक बार फिर उनका स्वर गूंजा, “आपकी पत्नी गांव-देहात से हैं. . .लेकिन, बहुत दुबली-पतली हैं।” सामान्यतः यह दोनों कथन एक दूजे विपरीत थे परंतु, सत्य थे।
महाशिल्पी फिर से मुस्कुराए।
पंडित जी अभी ध्यानस्थ थे। सब लोग शांतचित्त प्रतीक्षारत थे कि अब वे क्या कहेंगे कि तभी उन्होंने भविष्यवाणी की, “इस वर्ष आपका निजी आवास बन जाएगा।”
अब महाशिल्पी ठहाका मारकर हँसे। वे मातापिता से अभी कुछ समय पूर्व ही अलग होकर किराए के मकान में रह रहे थे। छोटे-छोटे बच्चे भी थे। परिवार से अलग होते समय कुछ देनदारियां भी ओढ़ ली थीं, ऐसे में अपना घर बनाना दिवास्वप्न से अधिक कुछ नहीं था।
लेकिन, पंडित जी. . .जिनकी आँखें अभी भी मुंदी थीं, “एक दिन ज्योतिषी बनोगे”, कहते हुए उन्होंने आँखें खोल दीं।
महाशिल्पी सच में घोर नास्तिक थे। पन्ना सेठ से यह कहकर कि पंडित जी को अभी जाने मत देना स्वयं बाहर सड़क पर निकल आए। उनका दृढ़ विश्वास था कि क्योंकि पन्ना सेठ पंडित जी के पुराने ग्राहक हैं इसलिए अबकी बार वो किसी भेदिए से सेठ के महाशिल्पी के संबंध में पूरी जानकारी लेकर आए हैं। अब वे किसी ऐसे व्यक्ति को पंडित जी के सामने बैठाना चाहते थे जिसके संबंध में पन्ना सेठ को भी कुछ जानकारी न हो।
तभी उन्हें एक परिचित युवा व्यवसायी मिल गए। उन्हें सारी बात समझाई और पंडित जी के सामने लाकर बैठा दिया।
पंडित जी उनका अंगूठा निहारकर बोले, “पूछिए, क्या पूछना है आपको?”
“पंडित जी, मेरा विवाह कब होगा?”
“एक संतान के पिता आप हो चुके दूजी आने वाली है। अब यह क्या बताएं कि विवाह कब होगा!”
“पंडित जी, सादर प्रणाम! आपके आशीर्वाद और प्रभुकृपा से सब कुशलमंगल है। आपका कथन अक्षरशः सत्य है”, कहते हुए उन व्यवसायी ने पंडित जी के चरणों में एक सौ रुपये का नोट रखते हुए निवेदन किया कि “यह तुच्छ भेंट स्वीकार करें।”
अब महाशिल्पी को यों लगा कि जैसे उनके विश्वास का महल सहजसमीर के एक झोंके से ही धराशायी हो गया। उन्होंने पंडित जी से पूछा, “पंडित जी, आप कहाँ ठहरे हैं?”
पंडित जी ने धर्मशाला का नाम बता दिया।
सायंकाल महाशिल्पी वहाँ पहुंचे तो पता चला कि पंडित जी दोपहर में ही धर्मशाला छोड़कर अपने घर लौट गए हैं।
एक वर्ष बीत गया। इस पूरे एक वर्ष में ज्योतिष और हस्तरेखा विज्ञान की कितनी पुस्तकें पढ़ डालीं इसका सही-सही ज्ञान महाशिल्पी को भी न था। एक दिन उनके एक निकट संबंधी कहीं से आने वाले थे जिनकी अगवानी को महाशिल्पी रेलवे प्लेटफार्म पर खड़े थे। तभी एक अन्य गाड़ी से वही पंडित जी उतर पड़े। महाशिल्पी ने तुरंत उन्हें लपक लिया। पंडित जी ने भी उन्हें पहचान लिया। अब महाशिल्पी भूल गए कि वे किसे लिवाने आए हैं और पंडित जी का सामान उठाते हुए बोले, “चलिए पंडित जी।”
पंडित जी ने बताया कि “अभी हम धर्मशाला जाएंगे और जब यहाँ तक आए हैं तो आपकी हौज़री भी आएंगे।”
लेकिन, महाशिल्पी अड़ गए कि “नहीं, आपको अभी चलना होगा।”
उनकी इस खींचतान को देखते हुए वहाँ बहुत सारे लोगों का जमघट लग गया। तब एक व्यक्ति ने महाशिल्पी से कहा कि “जब वे कह रहे हैं कि आपके यहाँ भी आएंगे तब आप इन्हें आज और अभी लेजाने की हठ क्यों कर रहे हैं?”
“पिछली बार चकमा देकर यह धर्मशाला से भाग गए थे।”
तब लोगों ने पंडित जी को समझाया कि “यदि आप इनसे परिचित हैं, यह आपको नगर में ही, और आपके परिचित स्थान पर ही लेजाना चाहते हैं, और अभी दिन का समय है, तो आपको निश्चिंत होकर चले जाना चाहिए।”
महाशिल्पी के साथ पंडित जी को आया देखकर पन्ना सेठ बहुत प्रसन्न हुए। और फिर जब पंडित जी अल्पाहार ले चुके तब महाशिल्पी उनके सामने बैठकर बोले, “पंडित जी, ग्रह नौ होते हैं? राशियां बारह होती हैं? सूर्य मेष राशि में उच्च एवं तुला राशि में नीच होते हैं? और, शनि की स्थिति इसके विपरित है? इसी प्रकार बृहस्पति कर्क राशि में उच्च एवं मकर राशि में नीच माने जाते हैं और, इसके ठीक उल्टी स्थिति मंगल की है? पंडित जी, सभी ग्रहों की कुल दशा एक सौ बीस वर्ष मानी गई है जिसमें सूर्य की. . .!”, महाशिल्पी को हाथ के संकेत से रोकते हुए पंडित जी बोले, “यह तो चमत्कार हो गया! हमने यह तो कहा था कि आप एक दिन ज्योतिषी बनेंगे लेकिन, इतनी शीघ्र और इतना ज्ञान. . .इसकी कल्पना हमने नहीं की थी। आप तो सच में बहुत ज्ञानी हो गए महाशिल्पी महोदय!”
“नहीं पंडित जी, एक वर्ष में दो-तीन सौ पुस्तकें पढ़ चुकने के बाद भी मैं यह नहीं जान पाया कि यह किस ग्रह की स्थिति अथवा कौनसी हस्तरेखा बताती है कि जहाँ तुम्हारा विवाह हुआ वहाँ छह कन्याएं थीं और जहाँ तुम्हारे पिता का विवाह हुआ वहाँ भी छह कन्याएं थीं?” महाशिल्पी का स्वर अब सहज नहीं था।
पंडित जी कुछ पल मौन रहकर बोले, “सेठ जी, महाशिल्पी अब हमारे कुटुंबी हुए। विनती है कि हम दोनों को कुछ समय एकांतसुख भोगने देवें।
सब लोग पंडित जी और महाशिल्पी को छोड़कर बाहर निकल गए। तब पंडित जी ने कहा, “महाशिल्पी महोदय, मुझे मेरे पिता ने कहा था कि जब कभी गृहस्थी में धन की आवश्यकता आन पड़े, तब पंजाब चले जाना। पंजाब में लुधियाना चले जाना। बुद्धि के बल पर और बिना किसी छलप्रपंच के तुम्हें वहाँ से पर्याप्त धन मिल जाएगा।
“मैं जो रहस्य आपको बताने जा रहा हूँ उसे आज नहीं तो कल आप जान ही जाएंगे क्योंकि आपमें साहस धैर्य और हठ बहुत है। मेरी विनती है कि मेरा यह रहस्य आप अपने तक ही रखिएगा क्योंकि मैं सैंकड़ों मील दूर से यहाँ धन के लिए ही आया करता हूँ। इसी धन से मेरी गृहस्थी चला करती है।
“महाशिल्पी, अंगूठे से कुछ भी नहीं दिखता। वास्तविकता यह है कि मैंने एक देवी की सिद्धि की है। मैं आँखें बंद करके उनका स्मरण किया करता हूँ और वे सामने बैठे व्यक्ति के संबंध में मेरे कान में इस प्रकार बताया करती हैं जैसे कोई फोन पर बात कर रहा हो।”
महाशिल्पी ने पंडित जी को प्रणाम किया और आदर सहित उन्हें धर्मशाला छोड़ आए।
यह सारा वृत्तांत ईस्वी सम्वत १९७५ से १९८० के मध्य किसी समय का है।
मनीष सतीश अथवा हरीश जैसा कोई भी नाम हो महाशिल्पी का, लेकिन किसी समय जो घोर नास्तिक हुआ करते थे आज लुधियाना नगर के प्रतिष्ठित ज्योतिषियों में गिने जाते हैं वे।
और, यही चमत्कार है !
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०१७३१२