चपर-कनाती
मुक्तक- १
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समय नष्ट करतें हैं सबका, करते बेमतलब की बातें।
इनके लिए बराबर सारे, गर्मी सर्दी और बरसातें।
देख लीजिए इस धरती पर, जगह-जगह हैं चपर-कनाती।
इनसे बचकर रहने में ही, सुखमय जीवन की सौगातें।
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मुक्तक- २
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चपर-कनाती को तुम अपने, कभी न रखना पास।
भला इसी में है हम सबका, बात यही है खास।
बनती बात बिगाड़े केवल, सुबह दोपहर शाम।
नहीं काम की बाते करते, करते बस बकवास।
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मुक्तक- ३
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राजनीति में भरे पड़े हैं, अनगिन चपर-कनाती लोग।
तहस नहस सब करने हेतू, खूब बनाते जी भर योग।
केवल स्वार्थ साधते रहते, जनहित से रहते हैं दूर।
कुटिल लिए मुस्कान हमेशा, अपनेपन का करते ढोंग।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, मण्डी (हि.प्र.)