चन्द्रशेखर आज़ाद…
चन्द्रशेखर आज़ाद
जिसने फिरंगियों को ललकारा
भारत का वो सपूत न्यारा
गोली थी सीने पर खाई
वीरता यूँ अंनत दिखलाई
सिंह सी तीव्र गर्जन से उठा
दम्भ फिरंगियों का फिर टूटा
सामर्थ्य,बल को मान लिया
अदम्य साहस को पहचान लिया
स्वाभिमान से शीर्ष उठाया
कटिल पंथ से न वो घबराया
रहा अकड़े तन बेख़ौफ़ खड़ा
अंतिम श्वास तक वो युद्ध लड़ा
शत्रुओं से न भयभीत हुआ
अन्याय से ना आतुर हुआ
उसने कुछ करने की ठानी
बात थी उसकी सबने मानी
हॄदय में अंगारों को जलाए
देशद्रोहियों की चिता जलाए
भरी जब रण में हुँकार उसने
काँप गया वो देखा जिसने
शत्रु न उसे कभी हरा पाया
‘आज़ाद’ ने चक्रव्यूह बनाया
फँस गया हर इक शत्रु उसमे
मातृभूमि को विजयी बनाया
था नस में नस आक्रोश भरा
कर्मपथ पर सतत बढ़ता चला
देश की खातिर लहू बहाया
वीर वो ‘आज़ाद’ कहलाया
फिरंगी तो उसे छू न पाया
ली शपथ जो उसे निभाया
रंग गई भूमि रक्त से उसके
उसने रक्त का दीप जलाया
✍️”कविता चौहान”
स्वरचित एवं मौलिक