*चक्रव्यूह*
जिंदगी में कितना कुछ
अप्रत्याशित घट जाता है –
शायद ही हम इंसानों को
कुदरत द्वारा संचालित
इन घटनाओं का
कोई मतलब,
कोई मकसद,
समझ में आता है –
कई बार हम महसूस करते हैं
कि हमारी अवधारणा के विपरीत –
मिल जाती है किसी को हार
और किसी को जीत –
हमने अनजाने में
खुद को मान लिया है
इतना सर्वशक्तिमान –
कि अपनी मर्जी से
किसी को बना दिया करते हैं महान –
और किसी बेकसूर का
कर देते हैं अपमान –
जो हमारे बनाए
नियम और कायदे का करता है उल्लंघन –
उसका हम दुरुह बना देते हैं जीवन –
क्या कभी किया है हमने?
चिंतन मनन और मंथन –
और किया है कभी
घटित और अघटित घटनाओं का विश्लेषण –
ईश्वर द्वारा किए गए कई कार्य
हमें तकलीफ देते हैं –
मगर क्या यह सच नहीं है
कि वही तजुर्बे हमें वाकई में सीख देते हैं –
हमारा वज़ूद क्षणभंगुर है,
हमारी क्षमता सीमित है,
जिस दिन हमें हो जाएगा
इस बात का अहसास –
हम सफलतापूर्वक कर सकेंगे
दंभ और अभिमान के चक्रव्यूह का
स्वयं ही विनाश।