चंद पैसे जब मिले
चंद पैसे जब मिले
बन गया पक्का घर,अब पड़ोसी का मेरे
धूप अब आती नहीं,और ठंड जाती नहीं।।
परदेश से लौटा वह,हांथ अब खाली नहीं
मकान बनवाया उसने,मंजिलें उसकी कई।।
हर मुसीबत में उसे,मदद हम करते रहे
निकल जाता सामने से,बोलता है अब नहीं।।
बैठता था खाट पर,वो धूप लेने के लिए
टोंकने से अब कभी,देखता इस ओर नहीं।।
चन्द पैसे मुट्ठियों में,जब किसी को मिले
गांठ रिश्तों की खुली,संस्कार भी रहते नहीं।।