चंद एहसास
1.
“वंदना” उसकी करता हूँ , आज भी मैं
कभी वो खुदा रहे हैं , मेरी मुहब्बत का
2.
“वंदना “ तुझको भूल जाऊं , यह आरज़ू नहीं है
मुहब्बत की बातों को तुम , खेल न समझना
3.
मुहब्बत की कोई सुबह , और कोई शाम नहीं होती
ये तो वफ़ा – ए – खुदाई है , कोई जाम तो नहीं
4.
वफ़ा के बदले वफ़ा मिले , ये आरज़ू न कर
ये दुनिया मौकापरस्तों से , पट चुकी है