चंद्रमुखी : मत्तग्यन्द सवैया
जोगिन एक मिली जिसने चित,
चैन चुराय लिया चुप मेरा ।
नैन बसी वह नित्य सतावत,
सोवत जागत डारिहु घेरा ।
धाम कहाँ उसका नहिं जानत,
ग्राम, पुरा, बृज माहिंउ हेरा ।
कौन उपाय करूँ जिससे अब,
मित्र करे वह आकर भेरा ।।
नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
श्रोत्रिय निवास बयाना
+91 84 4008-4006