*चंद्रमा की कला*
चंद्रमा की कला
चांद तुम हो बड़े प्यारे,
सुंदर गोल रुपहले न्यारे।
दुनिया को तुम मोह लेते ,
सबका मन हर्षाते हो।
लेकिन एक अदा तुम्हारी,
मुझे बिल्कुल नहीं भाती।
तुम स्थिर क्यों नहीं रहते,
घटते बढ़ते क्यों हो रहते।
स्थिरता ही तो जीवन में,
नित विश्वास जगाती है।
प्रतिदिन जो रूप बदले,
नाता उससे निभाएं कैसे।
आभा पाण्डेय