“चंदा मामा”
मेरे प्यारे चंदा मामा-
सँग-सँग मेरे चलते जाना ।
उजियारा मुझको दिखलाना,
पैदल पथ पर जब भी जाऊॅं
छुपकर मेरे पीछे आना।
तारों से बातें करवाना,
नभ की सारी सैर कराना।,
कुछ दिन मुझको पास वुलाकर,
अपनी बातों में उलझाना ।
जब मैं नानी के घर जाऊॅं,
छत के ऊपर तुमको पाऊॅं।
तुमसे घण्टों तक बतियाकर
दाल भात पूड़ी मैं खाऊॅं ।
कालीरात अँधेरा लाती,
जब घर की बाती बुझ जाती।
छत पर आकर तुम्हें निहारूँ,
जब तक मुझको नींद न आती।।
रचनाकाल 25 अप्रैल 218
जगदीश शर्मा सहज
अशोकनगर म0प्र0