चंदा तुम मेरे घर आना
चंदा तुम मेरे घर आना।।टेक।।
व्यथा लिए कुछ अपने मन में,
कोई बैठा है आंगन में,
उसकी पीड़ा को सहलाऊँ,
चंद्र खिलौना से बहलाऊँ,
पीर कसक की इस बेला में,
उसका मौन मुखर कर जाना।
चंदा तुम मेरे घर आना।।1।।
बड़े-बड़े अरमान सजाकर,
कोने में बैठी सकुचाकर,
जिनपर मैंने सबकुछ वारा,
शायद उनके मन अँधियारा,
मेरी माथे की बिँदिया से,
सवित-पुंज उनतक पहुँचाना।
चंदा तुम मेरे घर आना।।2।।
सुन ले मेरी बात बटोही,
साजन बन बैठे निर्मोही,
प्रेम-सूत्र को तोड़ चले हैँ,
वे मुझसे मुख मोड़ चले हैं,
कांति कहे, रूठे स्वामी से,
परिचय की भाषा बतलाना।
चंदा तुम मेरे घर आना।।3।।
© नन्दलाल सिंह ‘कांतिपति’