चंदा का अर्थशास्त्र
चंदा का अर्थशास्त्र
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“नमस्कार सर, आज हम आपके यहाँ गणपति चंदा के लिए आए हैं।” पाँच लोगों के साथ आए रमेश ने शर्मा जी से कहा।
“जी नमस्कार। आइए, बैठिए। मैं अभी लाकर देता हूँ।” शर्मा जी ने उन्हें आग्रहपूर्वक बैठने को कहा।
“सर, अभी तो चंदा ही दे दीजिए। और भी लोगों के घर जाना है। बैठ गए, तो बहुत समय लग जाएगा।” रमेश ने कहा।
“ठीक है रमेश बाबू। आप दो मिनट प्रतीक्षा कीजिए। मैं अभी लाया।” शर्मा जी अंदर गए और थोड़ी देर में वापस आकर पैसे देते हुए बोले, “ये लीजिए।”
“अरे सर। ये क्या ? मात्र एक सौ इंक्यावन रुपए ? कम से कम पाँच सौ रुपए तो कीजिए। मोहल्ले में इससे कम किसी ने नहीं दिया है। आपके सामने वाले वर्मा जी ने तो 1100/- रुपए दिए हैं। ये देखिए रसीद।” रमेश के साथ आए एक लड़के ने रसीद बुक दिखाते हुए कहा।
“ठीक है। ये लीजिए पैसे। आप हमारा भी 501/- रुपए कर दीजिए।” शर्मा जी ने साढ़े तीन सौ रुपए और देते हुए कहा।
“ये हुई न बात। धन्यवाद सर। अरे पंचम, शर्मा जी के नाम से 2100/- रुपए की रसीद काटकर दो।” रमेश ने रसीद बुक पकड़े पंचम से कहा।
शर्मा जी तुरंत बोले, “रमेश भाई, इससे ज्यादा पैसे दे पाने की मेरी ताकत नहीं है। बस इतना ही दे सकता हूँ।”
“सर, आपको और कुछ भी नहीं देना होगा। आपसे हम 500/- रुपए ही लेंगे, पर रसीद 2100/- रुपए की देंगे। क्या है कि अभी हमें मुहल्ले के और भी कई घरों में जाना है। वहाँ हमें बताना पड़ेगा न कि किसने कितने रुपए दिए।” रमेश जी ने उन्हें चंदे का अर्थशास्त्र समझाया।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़