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21 Aug 2021 · 1 min read

चंचल मन…

मेरी चाहत
चंचल हवा है
बिखरी है
विश्वास के
आकाश में

कभी भटकती यहाँ
कभी वहाँ
ठहरी कभी
अपने आशियाने की
आस में

मगर जब
हटती है
सपनों की धुँध
निकलता है
सच का सूरज

तो पाती हूँ
खुद को हमेशा
केवल अपनी
तन्हाईयों के
एहसास में

फिर भी
चलता है प्रतिपल
जीवन को
जो देता है
बूँद -बूँद

है मन को वही
सुकून हर पल

चंचल ही सही
मेरा मन तो है
मेरे पास में…
-✍️देवश्री पारीक ‘अर्पिता’
©®

Language: Hindi
6 Likes · 8 Comments · 519 Views
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