घोर कलयुग है भाई !
आज कल घोर कलयुग है भाई ,
अभिभावकों की शामत है आई।
बच के रहना अपनी संतानों से,
जान से हाथ धो बैठोगे गर डांट लगाई ।
भूल जाओ तुमने उन्हें जन्म दिया था,
और पालन पोषण में उम्र खपाई ।
कोई उसका श्रेय नही मिलेगा न कृतज्ञता,
तुमने अपनी मेहनत यूं ही गंवाई ।
चार पैसे कमाते ही अलग हो जायेंगे ,
फिर कौन इनका बाप और कौन माई।
अगर निर्धन / मध्यम वर्ग के हुए अभिभावक ,
तो भी मिलेगी इन से रुसवाई ।
और अगर धनवान हुए अभिभावक ,
तो खा जायेंगे ऐशो इशरत में आपकी सारी कमाई।
गुस्सा आजकल इनकी नाक पर रहता है ,
और चंडाल ने भी इनके सिर पर जगह बनाई ।
तकदीर खराब हुई किसी दिन तो समझो ,
मौत खुद चलके आपके द्वार पर आई ।
और कई तो इतने चालाक की काटो तो खून नहीं,
अप्रत्यक्ष रूप से हत्या माता पिता की करवाई ।
वोह हो सकता है कोई खूंखार हत्यारा मनुष्य ,
या खूंखार जानवर कोई भी हो सकता है भाई !
अप्रत्यक्ष रूप से कभी तो कभी खुद भी ,
अपने जन्म दाताओं के खून से हाथ धो सकते है ।
मत दो आज के जमाने में संस्कारों की दुहाई ।
अरे मासूम अभिभावकों ! अपनी जान ,
आज की हत्यारी संतानों से बचाओ भाई !
जुबान दराज़ी और गाली गलौज के साथ साथ ,
अब बहुत हिंसक और खतरनाक नई पीढ़ी हो गई ।