घूमता रहूं
मैं तो ठहरा घुमन्तु इन्सान
जब मन किया निकल लिए घुमने को
कभी सागर की गहराई नापने
कभी खुले नीले गगन को चूमने को
ऐसा भी जो जाता है अक्सर
कोई ठिकाना कह लेता है मुझसे
रुक जा तू यहाँ हमेशा के लिए
अस्थिरता ठीक नही ज़िन्दगी के लिए
मन भी सोच में पड़ जाता है
क्या ये सही है या गलत है
लेकिन जीतता आखिर दिल ही है
जिस काम से मिलता है मुझको सकून
उसे मैं क्यूँ न करूं
जब तक जियूँ बस घूमता ही रहूँ