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28 Jan 2024 · 1 min read

घूंटती नारी काल पर भारी ?

घूंटती नारी काल पर भारी ?
☘️🍀🌷🌹🌹
सुख सुंदर सपनों की माया
क्यों मलीन करती है काया
चंचल मन शीतलता देवी

फिर क्यों उदास होती रहती
मान अपमान अभिमान का
सहारा साहस आस्था भरा
श्रम कर्म संस्कार पूरित हो

फिर क्यों हताश निराश लगती
तेरी मीठी मुस्कानों में छिपी है
देश समाज परिवार सुख सपने
गर्व अभिमान के जग रक्षक तू

फिर क्यों उदास निराश दिखती
चित चिंतिंत चिंता भरी विभूति
रेखा बीच ललाट की त्रिलोचन
रौद्र क्रुध कपाट रुद्र रूप लिए

क्यों ? दुर्गा काली दीख रही
आधुनिकता पसरी क़ालीन
नारी सम्मान नहीं अपमान
तिरस्कार वासना भूत शिकार

त्राहीमाम करती करुणामयी
काया माया छोड तलवार उठानें
की रूत आयी सोंच नहीं उठा
खंजर बन रणचंडी बचा नारी

भृकुटी तान महाकाल लगती
घूंटटी जीवन टपकती आंसू
छोड आंखों की क़जरा गज़रा
कलेजे में ताने बाने ज़हरीली

वाणी मुरझा चेहरा ओठ लाल
मलीन विवश निरस नयन सरस
मधु लाचार मजबूर निज वतन
अबला मधुर जीवन बर्बाद कर

जगत आस अरमान छीन रही
धिक्कार हुंकार विकार निकाल
मिटा काली रात दिवा मतवाली
प्रज्वलित देव दिवाली दिल नारी

नारी तू अबला नहीं सबला हो
मांग लाल संभाल देश के लाल
त्याग घूंघट घूंट घूंटन जीवन का
कीमत समझ नारी मातृभूमि का
☘️🍀💐🙏🙏☘️
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण

Language: Hindi
1 Like · 162 Views
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