घूँघट पट से नयन झांकती
घूँघट पट से नयन झांकती
(विधा- छंदमुक्त स्वतंत्र))
जब चांदनी मेरी छत पे पिघले
पूनम का चांद मचलता हो,
जब बरखा रानी बिजुरी को छेङे
मन बैचैनी में बतियाता हो,
जब बूंदों की ताल से मिलकर
शाखों का सावन गाता हो,
जब पांव महावर में रंग कर
प्रीत के फूल खिलाता हो,
तब घूँघट पट से नयन झांकती
मुझसे मिलने आ जाना तुम
दो लाज भरे सुरमई नैनों संग
मुझसे कुछ बतिया जाना तुम!!
जब चंचल नैनों की अनुरक्ति में
कजरा चहका चहका हो,
जब इन गजब घनेरी जुल्फों में
रजनीगंधा महका महका हो,
जब तेरी झांझर की रूनझुन में
मौजों की ता ता थैया हो,
जब दिल की डगमग नैया में
सागर की हैया हैया हो,
तब घूँघट पट से नयन झांकती
मुझसे मिलने आ जाना तुम
दो लाज भरे सुरमई नैनों संग
मुझसे कुछ बतिया जाना तुम!!
जब तेरे दिल की धङकन भी
धक धक धक धङकी हो,
जब मन के सूनेपन की ज्वाला
प्रेम अगन में भङकी हो,
जब बरस बदरिया सावन की
झम झमा झम बरसी हो,
जब तुम जोगन सी बन दीवानी
पिया मिलन को तरसी हो,
तब घूँघट पट से नयन झांकती
मुझसे मिलने आ जाना तुम
दो लाज भरे सुरमई नैनों संग
मुझसे कुछ बतिया जाना तुम!!
—–डा निशा माथुर (स्वरचित)