घुटन
घुटन
घुटता है दर-दर जिस्मो जिगर,
घुटता है मन, हर दिल बा-सफ़र ।
घुटती हैं कुछ यादें, कुछ नुमाईशें भी
घुटता है तो यूँ ज़िन्दगी का बसर ।।
घुटता है तानों-बानों का सर्द खंजर,
घुटता है रातों का वो भी एक पहर ।
घुटते हैं दिन-दिन दोपहर सभी
घुटता है तो शाम का सूर्ख मंजर ।।
घुटता है तारिक का तन्हा क़मर,
घुटता है सन्नाटों में सूखा सहर ।
घुटते हैं कई लम्हें यूँ बेकसी में
घुटता है तो कल्बे-ए-खुमां दर-ब-दर ।।
घुटता है ख़्वाबों का जहां अब्तर,
घुटता है इबारत का फीका शहर ।
घुटती है जुबान बगैर लफ्ज के
घुटता है तो कातिब हर्फ-ए-नज़र ।।