घुटता है दम
आख़िर क्या कभी सोचा तुमने
क्यों मरा करते हैं मरने वाले!
ऐ सांसों पर लगाकर पाबंदी
जीने की नसीहत करने वाले!
धर्म, सभ्यता और संस्कृति की
हमें देंगे दुहाई किस मुंह से!
अब अमृत के झांसे दे-देकर
समाज में ज़हर भरने वाले!
आख़िर क्या कभी सोचा तुमने
क्यों मरा करते हैं मरने वाले!
ऐ सांसों पर लगाकर पाबंदी
जीने की नसीहत करने वाले!
धर्म, सभ्यता और संस्कृति की
हमें देंगे दुहाई किस मुंह से!
अब अमृत के झांसे दे-देकर
समाज में ज़हर भरने वाले!