घुंघट में
महफिल वही सही है, ना कविता नई रची है,
बस वही गीत याद आया, जो सावन में कभी सुनाया,
सावन सी झड़ी लगी है सम्मुख भी तू ही खड़ी है,
माहौल देख घबराया ,
बस वही गीत याद आया, जो सावन में कभी सुनाया |
बस बना मूड गाने का, इंतजार थातेरे आने का,
जैसे घुंघट सरकाया भीगा मुखड़ा दिखलाया,
बस वही गीत याद आया, जो सावन में कभी सुनाया |
तेरे पैर थिरक गए, बाजू भीम अटक गए,
कजरारे नैनो रंग छाया, गाने को मन मंडराया,
बस वही गीत याद आया, जो सावन में कभी सुनाया |