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20 Aug 2018 · 1 min read

घर निगाहों से कहीं तेरी उतर जाऊंगा

बह्र-रमल मुसम्मन मक़बून मसजूफ़
ग़ज़ल
गर निगाहों से कहीं तेरी उतर जाऊॅगा।
हो गया तेरा जो मुजरिम तो मैं मर जाऊॅगा।।

मैं तो बेघर हूं नही और ठिकाना कोई।
तूने दिल से जो निकाला तो किधर जाऊॅगा।।

ख़ार होता तो मैं आॅधी से भी लड सकता था।
फूल हूं मैं तो हवा से भी बिखर जाऊॅगा।।

याद ने मेरी रूलाया जो अगर तुझको कभी।
अश्क़ बनके तेरी पलकों पे ठहर जाऊॅगा।।

साख पे जो रहा तो सब्ज़ दिखूंगा सबको।
जो गया टूट न जाने मैं किधर जाऊॅगा।

रात दिन मेरे तसव्वुर में रहेगा ये ” अनीश ” ।
छोड़ कर दिल पे तेरे ऐसा असर जाऊॅगा।।

@nish shah

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