घर छोड़ गये तुम
ममता के ख़ज़ाने से मुँह मोड़ गए तुम
चंद सिक्कों की ख़ातिर घर छोड़ गए तुम
घर की शून्यता निगल रही है धीरे धीरे
उम्मीद का हर कतरा निचोड़ गए तुम
तेरे हर दुख की रेत जिस आँचल ने छानी थी
उसी आँचल में लिपटा दिल तोड़ गये तुम
तुम उड़ गये दुख बैठा रहा पंजे गड़ाये छाती पर
ये कैसी फड़फड़ाहट से नाता जोड़ गये तुम
ये कैसा जाना कि पलट कर आ न सके
ये ज़िंदगी को किस ओर मोड़ गए तुम
खर्च करने को बाक़ी थी अभी बहुत साँसें
वक्त से पहले गुल्लक फोड़ गए तुम
रेखांकन।रेखा
९.१०.२३