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9 Oct 2023 · 1 min read

घर छोड़ गये तुम

ममता के ख़ज़ाने से मुँह मोड़ गए तुम
चंद सिक्कों की ख़ातिर घर छोड़ गए तुम

घर की शून्यता निगल रही है धीरे धीरे
उम्मीद का हर कतरा निचोड़ गए तुम

तेरे हर दुख की रेत जिस आँचल ने छानी थी
उसी आँचल में लिपटा दिल तोड़ गये तुम

तुम उड़ गये दुख बैठा रहा पंजे गड़ाये छाती पर
ये कैसी फड़फड़ाहट से नाता जोड़ गये तुम

ये कैसा जाना कि पलट कर आ न सके
ये ज़िंदगी को किस ओर मोड़ गए तुम

खर्च करने को बाक़ी थी अभी बहुत साँसें
वक्त से पहले गुल्लक फोड़ गए तुम

रेखांकन।रेखा
९.१०.२३

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 245 Views
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