घमंडी का सिर नीचा
इतनी जरा सी बात,समंदर को भी खल गई।
एक कागज की नाव,मुझ पर कैसे चल गई।।
बड़ी बड़ी नदियां मुझ में डूब कर लुप्त हो गई।
छोटी सी चिड़िया,मुझमें डुबकी लेकर चली गई।।
बड़े बड़े जहाजों को मै तुरंत ही डुबो देता हूं।
बड़ी बड़ी लहरों को,मैं ही बस में कर लेता हूं।।
बड़े बड़े बलशालियों का भी घमंड टूट जाता हैं।
जब एक छोटा सा कीड़ा हाथी पर चढ़ जाता है।।
बड़े बड़े तैराकियो का भी घमंड चूर हो जाता है।
जब वह लहरों पर चलकर मेरे में समा जाता है।।
घमंड न रहा रावण का जब लंका उसकी जल गई।
देना पड़ा समुंदर को रास्ता जब लक्ष्मण की भौंहे चढ़ गई।।
घमंडी का सिर नीचा होता,कभी नही वह बोल पाता है।
जो बोलता है बड़े बोल हमेशा वह मुंह की खाता है।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम