घनाछरी
मनहरण घनाक्षरी
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चाँद कहे चाँदनी से
घूमने चलें कहीं तो
चाँदनी कहे कि आप
पूर्णिमा को आइये ।
आइये जो पूर्णिमा को
तारे साथ लाइयेगा
आँचल मे अंबर के
सारे फैल जाइये ।
घूमने की आदत जो
आपको लगी है रोज
जाइये तो जा के सारी
धरती नाप आइये ।
फिर भी भरे न मन
तब ऎसा करियेगा
नीले नीले सागर मे
जा के डूब जाइये ।
गीतेश दुबे ” गीत ”
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मनहरण घनाक्षरी
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तपती धरा ये कहे
सुनो जरा मेघराज
दल बल साथ अब
गगन मे छाइये ।
दामिनी चमक साथ
गरज बरज साथ
कारे कारे मेघन को
जादू उमड़ाइये ।
सुन के धरा पुकार
बरखा ने की फुहार
कण कण भीग कहे
और बरसाइये ।
घनन घनन घन
मन मे छनन छन,
भीगत रहे ये तन
जम के नहाइये ।
गीतेश दुबे ” गीत “