घनाक्षरी
घनाक्षरी
लीला प्रभु राम जी की ,राम ही समझते हैं ,
उन्हीं की कृपा से जीव ,धरती पे आता है |
उस मायापति की तो प्रबल है माया बन्धु,
आने पर जीव माया में ही लपटाता है |
बेटा – बेटी रहता है ,दादा दादी बनता है,
बनने बिगड़ने में सिर्फ रह जाता है |
जिस दिन राम जी का,पाता है इसारा फिर,
राम जी का अंश राम ही में मिल जाता है | |
अवध किशोर ‘अवधू’
मो. न.9918854285