घनाक्षरी
वीर तुम महान हो,
प्रजा की ही पुकार हो,
आगे आगे बढ़ चलो,
दुश्मनों को मारने।
तुमसे ही तो देश की,
भविष्य और साख है,
ये जमीं और ये घटा,
हैं लगी पुकारने।
अब तो ये जमीन भी,
तुम्हारी कर्ज दार हैं,
भारत की तो धूल भी,
है लगी सराहने।
वीर तुम सुकृत हो,
तुमने ये बीड़ा लिया,
दुश्मनों का सारा नशा,
लगे हो उतारने।