घणो ललचावे मन थारो,मारी तितरड़ी(हाड़ौती भाषा)/राजस्थानी)
(शेर)- हो ग्यो आबाद घर वू , जिण घर तू आई है।
रोज बणे पकवान वहाँ, तू दिवाळी लाई है।।
बदल दी तूने सूरत, उण घर और भरतार री।
खुशकिस्मत है मर्द वू , जिणकी किस्मत में तू आई है।।
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घणो ललचावे मन थारो, मारी तितरड़ी।
नहीं मन पे बस थारो, मारी तितरड़ी।।
घणो ललचावे मन——————–।।
ले जावे बाजार मनै तू , चाट कचौरी खावा नै।
होटल माय लड्डू मिठाई, पानीपुड़ी खावा नै।।
रसगुल्ला घणा पसंद तनै, मारी तितरड़ी।
नहीं मन पे बस थारो, मारी तितरड़ी।।
घणो ललचावे मन———————।।
करे रोजाना शॉपिंग तू , रोज बाजारा जाकर।
करे जेब मारी खाली तू , मनै बाजार ले जाकर।।
गहना कपड़ा रो तनै है शौक, मारी तितरड़ी।
नहीं मन पे बस थारो, मारी तितरड़ी।।
घणो ललचावे मन———————–।।
घूमने जावाने तू ,भरे चुमटयाँ मारे।
मीठी मीठी बातां कर, डाले डोरा मारे।।
करे मारुति मं तू सैर, मारी तितरड़ी।
नहीं मन पे बस थारो, मारी तितरड़ी।।
घणो ललचावे मन———————–।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)