घटा घनघोर छाई है…
घुमड़ आया मचल सावन, घटा घनघोर छाई है।
सिहरते झूमते तरु भी, खुशी हर ओर छाई है।
करें आगाज खुशियों का, किलक कचनार की कलियाँ,
लता ओढ़े चुनर साड़ी, लजीली नार आई है।
घुमड़ नभ में घिरे बादल,गरजते जोश में बादल।
खुशी में झूमते पगले, बरसते मोद में बादल।
झुलसता देख तन भू का, बरसते घन घनन घन घन।
धरा से नेह-सुख पाकर, सिमटते गोद में बादल।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )