“घटना और दुर्घटना”
“घटना और दुर्घटना”
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घटना, घटना सदा जरूरी होती है,
हर घटने की कोई मजबूरी होती है।
घटनों के घटने के भी, कई घटक होते है,
घटनाें को घटाने हेतु भी उठापटक होते है।
घटनो के भी होते हैं, कई प्रकार;
हर घटने पर ही टिकी है बाजार।
घटनों का सर्वदा अलग ही संसार है,
घटता वही, जिसका कोई हकदार है।
कुछ घटना खगोलीय होती है,
तो कुछ होती है, भौगोलीय।
कुछ घटना अचानक होती है,
तो कुछ होती है, आयोजित।
घटनों की, भले नही आपकी इच्छा है;
लेकिन हर घटना ही, आपकी परीक्षा है।
किसी घटना से मत घबराइए,
मगर, दुर्घटना को दूर भगाइए।
दुर्घटना छुपी, आपके हर संस्कारों में,
घटती; गली,मोहल्ले और बाजारों में।
घटना और दुर्घटना दोनों “बहन” है, मतवाली;
घटना अगर “बीवी” है, तो दुर्घटना है “साली”।
स्वरचित सह मौलिक
…..✍️”पंकज कर्ण”
………….कटिहार।।