*घटते प्रतिदिन जा रहे, जीवन के दिन-रात (कुंडलिया)*
घटते प्रतिदिन जा रहे, जीवन के दिन-रात (कुंडलिया)
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घटते प्रतिदिन जा रहे, जीवन के दिन-रात
मिला न ईश्वर आज तक, चिंता की यह बात
चिंता की यह बात, नहीं प्रभु को पहचाना
जाने जग के भोग, सत्य उनको ही माना
कहते रवि कविराय, सॅंभालो पैर रपटते
सॉंसें कुछ ही शेष, देह में घटते-घटते
रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा ,रामपुर ,उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451