गज़ल
बरसती निगाहों का तो गम नहीं है
दिले दर्द भी यार पर कम नहीं है
सिवा प्यार के तेरे कुछ ओ न चाहा
नजर में तेरे यार बस हम नहीं हैं
कहीं कोई तारा , कहीं कोई जुगनू
चले साथ जो मेरे वो तम नहीं है
मेरी रूह तन से जुदा हो रही अब
रहा ज़िन्दगी में भी वो दम नहीं है
हमीं साज हैं और नग्मा भी हम ही
मगर ताल में मेरे सरगम नहीं है
जिये जा रहे अपने ही बे खुदी में
बने हमसफर जो वो आदम नहीं है
( लक्ष्मण दावानी ✍ )
11/9/2018
गिरह
जलाया दिया किस ने ये आरजू का
अभी दिल लगाने का मौसम नहीं है