Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
3 Oct 2021 · 1 min read

गज़ल

सुरक्षित है घर फिर भी ताले लगे हैं।
क्यों रक्षित की चिन्ता बढ़ाने लगे हैं।
मची लूट बाजार में ऐॐ सियासत
खाद्यान्न छीनने अब निवाले लगे हैं।
कहीं सड़ रहा है कोई मर रहा है
कई मरने की तैयारी करने लगे हैं।
सुरक्षित घरों से निकल मेरे आका
किस्मत की पोथी अब सताने लगे हैं।
सिलसिला मौत का खेत–खलिहान में
अब अपना सब जौहर दिखाने लगे हैं।
प््राजा हूँ तुम्हें सौंप डाला सियासत
उठो सत्य हेतु दुःख सताने लगे हैं।
बहस करते तूने बितायी है सदियाँ
बहस के विषय विष चढ़ाने लगे हैं।
प्रभु के दिये संसाधनों को गिनो तुम
हम तक तो लाओ जी जलाने लगे हैं।
सुव्यस्थित नहीं क्यों होता है सब कुछ
भूख‚दर्द‚त्राास‚पीड़ा रूलाने लगे हैं।
अराजक नहीं राज होने दो राजा
क्रांतिवाले पुनः गीत गाने लगे हैं।

1 Comment · 347 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
मारी थी कभी कुल्हाड़ी अपने ही पांव पर ,
मारी थी कभी कुल्हाड़ी अपने ही पांव पर ,
ओनिका सेतिया 'अनु '
चिड़िया बैठी सोच में, तिनका-तिनका जोड़।
चिड़िया बैठी सोच में, तिनका-तिनका जोड़।
डॉ.सीमा अग्रवाल
*अज्ञानी की कलम*
*अज्ञानी की कलम*
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी
आदि शंकराचार्य
आदि शंकराचार्य
Shekhar Chandra Mitra
सीख गांव की
सीख गांव की
Mangilal 713
* सत्य,
* सत्य,"मीठा या कड़वा" *
मनोज कर्ण
दुर्लभ हुईं सात्विक विचारों की श्रृंखला
दुर्लभ हुईं सात्विक विचारों की श्रृंखला
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
चंद अशआर -ग़ज़ल
चंद अशआर -ग़ज़ल
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
पलकों की
पलकों की
हिमांशु Kulshrestha
तहजीब राखिए !
तहजीब राखिए !
साहित्य गौरव
मै ज़िन्दगी के उस दौर से गुज़र रहा हूँ जहाँ मेरे हालात और मै
मै ज़िन्दगी के उस दौर से गुज़र रहा हूँ जहाँ मेरे हालात और मै
पूर्वार्थ
जलियांवाला बाग की घटना, दहला देने वाली थी
जलियांवाला बाग की घटना, दहला देने वाली थी
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
जो मनुष्य सिर्फ अपने लिए जीता है,
जो मनुष्य सिर्फ अपने लिए जीता है,
नेताम आर सी
तेरे बिन घर जैसे एक मकां बन जाता है
तेरे बिन घर जैसे एक मकां बन जाता है
Bhupendra Rawat
तुमसे मोहब्बत हमको नहीं क्यों
तुमसे मोहब्बत हमको नहीं क्यों
gurudeenverma198
कुछ मत कहो
कुछ मत कहो
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
फ़ितरत को जब से
फ़ितरत को जब से
Dr fauzia Naseem shad
किसी के साथ सोना और किसी का होना दोनों में ज़मीन आसमान का फर
किसी के साथ सोना और किसी का होना दोनों में ज़मीन आसमान का फर
Rj Anand Prajapati
पहले अपने रूप का,
पहले अपने रूप का,
sushil sarna
"चाँदनी रातें"
Pushpraj Anant
कुछ अलग लिखते हैं। ।।।
कुछ अलग लिखते हैं। ।।।
Tarang Shukla
शेखर सिंह
शेखर सिंह
शेखर सिंह
टेढ़ी ऊंगली
टेढ़ी ऊंगली
Dr. Pradeep Kumar Sharma
Indulge, Live and Love
Indulge, Live and Love
Dhriti Mishra
"खूबसूरती"
Dr. Kishan tandon kranti
*हनुमान (कुंडलिया)*
*हनुमान (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
दलितों, वंचितों की मुक्ति का आह्वान करती हैं अजय यतीश की कविताएँ/ आनंद प्रवीण
दलितों, वंचितों की मुक्ति का आह्वान करती हैं अजय यतीश की कविताएँ/ आनंद प्रवीण
आनंद प्रवीण
Keep saying something, and keep writing something of yours!
Keep saying something, and keep writing something of yours!
DrLakshman Jha Parimal
💐प्रेम कौतुक-462💐
💐प्रेम कौतुक-462💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
3244.*पूर्णिका*
3244.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
Loading...