गज़ल
सभी राज हमसे छिपाए हुए हैं
कभी जो थे अपने पराए हुए हैं
लबों पे हमारे हंसी तुम ना देखो जमाने से’ हम चोट खाए हुए हैं
भले वो न चाहें हमें भूलके भी मगर नाज उनके उठाए हुए हैं
न आवाज कोई न कोई इशारा
न जाने कहां दिल लगाए हुए हैं
खबर क्या उन्हें हम उन्हीं पे फिद़ा हैं कहानी गज़ल में बताए हुए हैं
वही ‘श्रेष्ठ’ दिलवर जिन्हें चाहता हो रहें साथ जो प्यार पाए हुए हैं