गज़ल :– हुस्न तेरा जो कातिलाना है ।
गज़ल :– हुस्न तेरा जो कातिलाना है ।*
काफिया :– आना
रदीफ़ :– है
✍? अनुज तिवारी “इंदवार”
बहर :–
ये मुलाक़ात इक बहाना है
2122—1212—22
मतला
ख्वाबों का इक महल बनाना है ।
प्यार ही प्यार से सजाना है ।
हुस्न ए मतला
हुस्न तेरा जो कातिलाना है ।
ये मगर ख़ाक हो के जाना है ।
शेर
तेरी जुल्फों के ये घने साये ।
दर्दे-दिल का यहीं ठिकाना है ।
सच यही आज सोचता होगा ।
झूठ की शाख को गिराना है ।
बात दिल की जुबां पे आने दो ।
आज़ मौसम भी आशिकाना है ।
तेरी होठों को छू के जो निकले ।
अब वही गीत गुनगुनाना है ।
मैकदे की मुझे ज़रूरत क्या ।
हुस्न तेरा शराबखाना है ।