गज़ल :– मैकदों में लड़खड़ाने आ गए ॥
गज़ल :–मैकदों में लड़खड़ाने आ गए ॥
प्यार वो हम से जताने आ गए ।
आज फ़िर से आजमाने आ गए ।
बेडियां पैरों में मेरे क्या बँधी ,
फैसला कातिल सुनाने आ गए ।
जब हुआ मुश्किल सम्हलना भी मिरा
मैकदों में लड़खड़ाने आ गए ।
इसकदर इफ्फत से वो समझे हमें ,
साँस क्या टूटी , जलाने आ गए ।
आब आँखो से मिरे क्या गिर गया ,
आग बस्ती की बुझाने आ गए ।
अनुज तिवारी “इंदवार”