गज़ल—– निर्मला कपिला उलझनो को साथ ले कर चल रहे हैं
गज़ल—– निर्मला कपिला
उलझनो को साथ ले कर चल रहे हैं
वक्त की सौगात ले कर छल रहे हैं
ढूंढते हैं नित नया सूरज जहां मे
ख्वाबों की बारात ले कर चल रहे हैं
कट ही जायेगी खुशी से ज़िन्दगी ये
हाथ मे वो हाथ लेकर चल रहे हैं
ताउम्र बन्धन न टूटे गा ये अपना
प्यार के जज़्बात ले कर चल रहे हैं
नींद अपनी आज कुछ रूठी हुयी है
पलकों पे हम रात ले कर चल रहे हैं
उनको झगडे का बहाना चाहिये था
फिर पुरानी बात ले कर चल रहे हैं
हम सफर मिलते रहे पर बेवफा से
रिश्तों के आघात ले कर चल रहे हैं
नेताओं का स्तर इतना गिर गया है
इक टका औकात ले कर चल रहे हैं
देखती है राह जनता राहतों की
काम उल्कापात ले कर चल रहे हैं