गज़ल :– अब हमारे दरमियां भी फासला कुछ भी नहीँ ।।
तरही गज़ल :–
2122–2122–2122–212
आसरा कुछ भी नहीँ है वासता कुछ भी नहीँ ।
ज़िंदगी तो चंद लम्हों के सिवा कुछ भी नहीँ ।
बिन तुम्हारे ये चमन है आज भी उजड़ा हुआ ,
अब हमारी खैरियत का सिलसिला कुछ भी नहीँ ।
देखता जो हर पहर आगोश में मुझको लिए ,
हैं सितारे लाख , मेरे चाँद सा कुछ भी नहीँ ।
मेरी हर इक आह उल्फ़त को बयां करती हैं ये ,
इन निगाहों का तेरे बिन आसरा कुछ भी नहीँ ।
तुम सदायें याद रखना हमवफा हरगिज़ वहाँ ,
अब हमारे दरमियां भी फासला कुछ भी नहीँ ।
आग थी ये तो विरह की वस धुआँ उठता रहा ,
लोग कहते हैं वहाँ पर तो जला कुछ भी नहीँ ।
हम उसूलों पे चले, हैं राह-उल्फ़त मोड़ पे ,
रौँदने के इक सिवा अब रासता कुछ भी नहीँ ।
अनुज तिवारी “इंदवार”
उमरिया
मध्य-प्रदेश
स्वरचित