ग्रहण
चन्द्र हो या सुर्य ग्रहण
जाने क्यों डरते हो
सुनी अनसुनी बातों पर
ख़ुद से लड़ते हो
दोष गुण पता नहीं
दोराहे पर चलते हो
सोच पर लगा ग्रहण
खुद को ही छलते हो
मन की बेचैनी से
जाने क्यूं लड़ते हो
शकुन अपशकुन के
चक्कर में पड़ते हो
भूखे प्यासे रह कर
प्रार्थना करते हो
ग्रहण के पश्चात ही
कुछ ग्रहण करते हो
बहुत अच्छी बात है
दान दक्षिणा करते हो
किसी जरूरतमंद की
सहायता करते हो
दिल से करना चाहो करो
विवशता से क्यूं करते हो
आजाद हो पर खुद को
बेड़ियों में कैद करते हो
ग्रहण है खगोलीय घटना
क्या विज्ञान भी पढ़ते हो
मानो न मानो तुम्हारी इच्छा
वेद-पुराणों से क्यों लड़ते हो
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© गौतम जैन ®