ग्रन्थ
है भरा हुआ भंडार अखुट,
पुस्तकें ज्ञान की सागर हैं।
जीवन को जीना सिखलाती,
दिग्दर्शन में नित आगर हैं।
रामायण गीता गुरुग्रंथ,
बाइबिल कुरान एक पोथी है।
निर्वाण पंथ पर ले जाती,
इनके बिन रचना थोथी है।
पुस्तक में करुणा प्रेम भक्ति,
वैराग्य न्याय दंड पुरस्कार।
यश अपयश राग द्वेष धृणा,
अधिकार कर्म भय तिरस्कार।
बिन स्वार्थ के सब सिखला देती,
पुस्तक एक सहज सहेली है।
न साथ धरो यदि पुस्तक का,
तो समझो कोई पहेली है।
इन में सीख छिपी है ऐसे,
जैसे मेंहदी में लाल रंग।
पुस्तक परिवर्तन करतीं हैं,
मानव की रहनी चाल ढंग।