गौमाता की व्यथा
मैं उसे रोज अपने दरवाजे पर आते देखा करता ,
कातर दृष्टि से व्यक्त उसकी मूक याचना देखा करता ,
उसे कुछ बासी रोटियों से तृप्त आभार व्यक्त करते देखा करता ,
यह मानव भी कितना निष्ठुर है है जिसको माता कहता है ,
जिसके दुग्ध से पोषित होकर पला बड़ा होता है ,
उसी माता को दुग्ध ना देने पर सड़क पर मरने के लिए छोड़ देता है ,
निरीह माता भोजन की तलाश में दर-दर भटकती फिरती है ,
कभी कचरे के ढेर में फेंकी हुई जूठन के डिब्बों में अपनी क्षुधा की शांति तलाशती रहती है ,
कभी-कभी सड़क में हादसों का शिकार होकर अपनी जान गवां बैठती है ,
कभी-कभी पंगु होकर नारकीय जीवन व्यतीत करने लिए विवश होती है ,
कभी-कभी कचरा खाकर बीमार पड़ मृत्यु को
प्राप्त होती है ,
भूख से त्रस्त वह सब्जी मंडियों का कचरा खाने के लिए बाध्य होती है ,
वहां भी वह डंडों से पिटकर अपमानित दुःखी माता अपने मन ही मन में रोती है ,
और ईश्वर से कहती है मुझे गौ माता क्यों बनाया ?
जिन्हें अपने बच्चों भांति पोषित कर बड़ा किया ,
उन्ही ने मुझे ये घोर कष्टप्रद दिन क्यों दिखाया ?
ये जो धर्म की दुहाई देते हैं मुझे अपनी
माता कहते हैं ,
मेरे संरक्षण की बात कहकर लड़ने मरने पर
उतारू होते हैं ,
परन्तु अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए मेरा शोषण करके मुझे मरने के लिए छोड़ देते हैं ,
ये सब अपने स्वार्थ के लिए ही
मेरा गुणगान करते फिरते हैं ,
फिर मुझे ही अपमानित प्रताड़ित कर
घोर कष्ट देते रहते हैं ,
तू मुझे इस पवित्र नाम के बंधन से
छुटकारा दिला दे ,
मेरा अस्तित्व पशु का ही रहने दे उसमें
मानव भाव ना मिला दे ।