गोवर्धन
गोवर्धन
हे कृष्ण, अंतर्धान कहाँ, किन गलियों में
गोवर्धन पुनः धारण करो निज उंगलियों में
दम्भ इंद्र-सा, दरप रहा सत्ता के गलियारों में
करुण राग उत्पन्न मन में बेबस बनिहारों के
अंध्दृष्टि जग में,लोलुपबहुल वृष्टि अति गर्जन
दिव्य रुप दर्शन प्रभु,हो विविध विकार वर्जन
मान मर्दन,सर्व-सम्वर्द्धन, हे गिरिधर गोपाल
आओ दीनजनों की सुध लो,प्रभु दीनदयाल
-©नवल किशोर सिंह