ज्ञान नैनू पकड़, बन अमल दिव्य पथ
प्रेम शुभ दिव्य सत् ,स्व विचारों को मथ|
ज्ञान नैैनू पकड़, बन अमल दिव्य पथ |
यामिनी के प्रहर- सम तुम्हारी पलक|
प्रीति मन संग खेले, दे रतिमय झलक|
किंतु दिल बोले सद्प्रेेम में वासना
कभी आएगी न, लेता हूँँ शपथ|
प्रेम शुभ……….
सद् सहारा तुम्हारे हृदय फूल का |
दिव्य चाहत की प्यासी, अमल भूल का |
प्रीतिमधु उर चखें, बोध नहिं हो वृथा|
चित्त पर नहीं भारी पड़े, मनमथ |
प्रेम शुभ…….
जग कला, शुचि मुहब्बत के अनुनाद की |
हर्षमय सत् मिलन, सुख के संवाद की |
ईश्वरी पूरे आनंदमय रास की |
आत्मा एक ,दो सिर्फ तनमय सु रथ|
प्रेम शुभ दिव्य सत् , स्व विचारों को मथ|
ज्ञान नैनू पकड़,बन अमल दिव्य पथ|
बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए” एवं “क्रौंच सुऋषि आलोक” कृतियों के प्रणेता