गृहस्थ संत श्री राम निवास अग्रवाल( आढ़ती )
गृहस्थ संत श्री राम निवास अग्रवाल( आढ़ती ):
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रामनिवास जी श्वेत वस्त्रों में संत थे। गृहस्थ जीवन बिताते हुए तथा घर परिवार में रहते हुए किस प्रकार से एक विशुद्ध आध्यात्मिक जीवन जिया जा सकता है, इसके वह श्रेष्ठ उदाहरण थे । सफेद धोती कुर्ते में उनकी सादगी भरी पहचान अनूठी थी। पुष्ट देह, सांवला शरीर, निश्चल मुस्कान- यही तो उनकी पहचान थी। वह मुझसे करीब 30- 35 साल के लगभग बड़े होंगे।
परिचय तो वैसे मेरा उनसे न जाने कबसे था, लेकिन आमने-सामने बैठकर पहला संपर्क दिसंबर 2006 में हुआ,जब पूज्य पिताजी अस्पताल में भर्ती थे और वह उनका हालचाल पूछने के लिए मेरे पास दुकान पर आए थे । फिर कई बार उनका आना हुआ तथा मृत्यु के बाद भी वह कृपा करके मुझसे मिलते रहे। उन दिनों उनका स्वास्थ्य अच्छा था। पैदल चलते हुए आते थे और दुकान के चबूतरे पर पैर लटकाकर काफी देर तक मुझसे बातें करते रहते थे। धीरे धीरे उनसे वार्ता में मुझे रस आने लगा और संबंध प्रगाढ़ होता चला गया । न जाने कब कैसे चर्चा अध्यात्म की ओर मुड़ गई और फिर तो रामनिवास जी के पास न जाने कितने ही संतों के सानिध्य के अनुभव थे। न केवल हिंदू संतो के अपितु मुस्लिम फकीरों के भी।
एक कोई मुस्लिम संत थे, जिनको वह “मियां जी” कहकर स्मरण करते थे। मियां जी सच्ची आध्यात्मिक साधना के प्रतीक थे। उनमें कोई दिखावा नहीं था ,लेकिन अलौकिक शक्तियां उन्हें प्राप्त थीं, ऐसा रामनिवास जी का भी मानना था और जिस प्रकार की चर्चाएं उनके बारे में रामनिवास जी ने की थीं, उससे मुझे भी ऐसा ही लगा। रामनिवास जी जैसे सीधे सच्चे और छल कपट से रहित व्यक्ति के साथ प्रायः संत लोग जुड़ जाया करते हैं । मियां जी को भी रामनिवास जी से मिलकर बहुत अच्छा लगता था। रामनिवास जी ने मियां जी की सादगी, दिखावटीपन से दूर उनके विशुद्ध आध्यात्मिक जीवन के बारे में बहुत से किस्से सुनाए, जिनका अभिप्राय यही था कि एक सच्चा संत सद् ग्रहस्थ व्यक्ति की ओर अनायास आकृष्ट हो जाता है । मियां जी में अलौकिक शक्तियां विद्यमान थीं और समय-समय पर उन शक्तियों से रामनिवास जी का भी परिचय हुआ।
तात्पर्य यह है कि रामनिवास जी एक शुद्ध अंतरात्मा के स्वामी थे और जैसा उनका सादगी से भरा व्यक्तित्व था , वैसे ही उनके संपर्क शुद्ध अंतःकरण वाले व्यक्तियों के साथ बनते चले गए।
बाबा लक्ष्मण दास जी समाधि के भक्तों में रामनिवास जी भी थे। बाबा लक्ष्मण दास जी की जीवित अवस्था में समाधि लेने का वर्णन भी उन्होंने मुझे सुनाया था । यह वही वर्णन था जो मैं बचपन से न जाने कितनों के मुख से सुनता चला आ रहा था । फिर मैंने बाबा लक्ष्मण दास समाधि चालीसा लिखी। रामनिवास जी ने उसकी कई प्रतियां मुझसे लीं और कहा कि वह इन्हें सबको देना चाहते हैं । इस पुस्तक में वही सब बातें थी जो रामनिवास जी ने भी बताई थीं, और जिन से यह सिद्ध होता था कि एक मुस्लिम गुरु का हिंदू शिष्य किस प्रकार से महान आध्यात्मिक साधना का पथिक बना।
रामनिवास जी की दुकान नए गंज में चावल आदि के थोक व्यापार की थी तथा उनका निवास पुराना गंज में प्रसिद्ध माई के मंदिर के निकट था । धीरे धीरे रामनिवास जी दुकान पर मुझसे मिलने आने के लिए पैदल के स्थान पर फिर रिक्शा में आने लगे थे । बाद में रिक्शा में बैठने तथा रिक्शा में बैठकर जाने में भी उन्हें असुविधा होती थी। उनका आना बंद हो गया। फिर मैं कई बार उनसे घर पर जाकर मिला। उनका आग्रह रहता था कि अगली बार जब आओ तो बहू को भी लेकर आना। फिर शायद एक आध बार या शायद दो तीन बार मेरी पत्नी भी मेरे साथ उनके घर गई थीं । रामनिवास जी के साथ मिलकर बहुत अच्छा लगता था।
शारीरिक दुर्बलता की स्थिति में भी उनके पास आध्यात्मिक अनुभवों का खजाना खुला रहता था। यह नए नए अनुभव थे ,जो उनके पास आते रहते थे। जब मैं उनके घर जाकर उनसे मिलता था, तब वह बताते थे कि विभिन्न देवी-देवताओं के उन्हें दर्शन हो जाते हैं । मैं आश्चर्य से भर कर पूछता था कि यह भ्रम भी तो हो सकता है ? वह कहते थे” नहीं ! यह बिल्कुल साक्षात बात है । जैसे मैं तुम्हें देख रहा हूं ठीक वैसा ही है ।मुझे ईश्वर का दर्शन हुआ है।”
धीरे धीरे शरीर अपनी आयु पूर्ण करता ही है ।…और 6 अप्रैल 2019 को मैंने अमर उजाला में पढ़ा कि रामनिवास जी नहीं रहे। एक सच्ची, निश्छल और महान आत्मा से यह संसार वंचित हो गया ।
लेखक : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश, मोबाइल 99976 15451