गूंजती रहती हो मुझमें,शोख शहनाई-सी तुम..!!
शोर की इस भीड़ में ख़ामोश तन्हाई-सी तुम..
ज़िन्दगी है धूप तो,मदमस्त पुरवाई-सी तुम..
आज मैं बारिश में जब भीगा,तो तुम ज़ाहिर हुईं..
जाने कब से रह रही थी,मुझमें अंगड़ाई-सी तुम..
चाहे महफ़िल में रहूं,चाहे अकेले में रहूं ..
गूंजती रहती हो मुझमें,शोख शहनाई-सी तुम..
लाओ वो तस्वीर जिसमें,प्यार से बैठे हैं हम..
मैं हूं कुछ सहमा हुआ-सा,और शरमाई-सी तुम..
मैं अगर मोती नहीं बनता,तो क्या बनता..
हो मेरे चारों तरफ ,सागर की गहराई-सी तुम..
✍️आशुतोष शुक्ला