गूंगी प्रजा बहरा राजा रहते मेरे देश मे !!
*उलटी गंगा, विषमयी धारे, बहते मेरे देश में*
*गूंगी प्रजा, बहरा राजा रहते मेरे देश मे !!*
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शहरों के शहर भरे है,
ज़िंदा चलती लाशो से,
घर घर में चौसर बिछी है,
छल कपटों भरे पाशो से,
आतंकी गुट शरणाते है,
गिरिजाघर गुरूद्वारो में,
नफरत पाठ पढ़ाये जाते
मस्जिद और शिवालयों में,
घर की आन को अपने लूटे व्यभिचारी आवेश में,
फिर भी खुद को विश्व विजेता कहते मेरे देश में !!
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धर्म नाम पर लड़ते लोग,
उसमे नेता चुटकी लेते है,
खुद में लड़ाकर जनता को,
कुर्सी पक्की कर लेते है,
शर्म ओ हया सब त्याग दिए,
शान शौकत के चक्कर में,
नामोनिशान मिटा देते है
जो आये कोई टक्कर में,
दानव दल प्रणेता रहते, साधू संतो के वेश मे,
मानवता के सब कीर्तिमान ढहते मेरे देश में !!
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राम कृष्ण के भक्त बनकर,
नित पाप कर्म जो करते है,
नर पिशाच की सीमा लांघ,
भगवन का रूप धरते है,
हर लेते अस्मित नारी की,
बने असुरो के जन्मदाता है,
रिश्तो नातो का मोल नहीं,
कोई मात पिता न भ्राता है,
ऐसे महामानव मिलते जन सेवको के भेष में,
लाचार बेबस जुल्म सितम सहते मेरे देश में !!
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सीता को कहते है माता,
राधा की पूजा करते है,
नारी को समझे भोग वस्तु,
नित चिरहरण ये करते है,
सभ्यता का ये चोला ओढ़े
ढोंग आडम्बर में जोड़ नहीं,
गिरगिट लोमड़ हार मानते,
रंग बदल कोई तोड़ नहीं,
नौ दिवस नित्य पूजन करते देवी के परिवेश में,
दशम दिवस नारी निर्झर अश्रु बहते मेरे देश में !!
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गूंगी प्रजा, बहरा राजा रहते मेरे देश में,
फिर भी खुद को विश्व विजेता कहते मेरे देश में !
उलटी गंगा, विषमयी धारे, बहते मेरे देश में
गूंगी प्रजा, बहरा राजा रहते मेरे देश मे !!
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स्वरचित : डी के निवातिया