गूँज
चौथे पहर की गूँज के
कुछ मायने अलग होते हैं
वैसे तो गुलाबों की ख़ुशबू
फूलों पर भँवरे
सब्ज़ बाग हर कोई लिखता है
पर रात के सन्नाटे में
आँगन में उल्टे पड़े घड़े पर
छत से टपकती एक बूँद की गूंज
कोई नहीं सुनता है
वह गूंज अक्सर क्रांति से
पहले के सन्नाटे को चीरती है
भंग करती है खामोशी को
शायद एक जुनून को उतरना था
आसमाँ से
या फ़िर सफ़र पर निकला कोई
गिन रहा था बचे हुए लम्हे !!!
@संदीप