गुलों की क़बा को सिया भी नहीं था
गुलों की क़बा को सिया भी नहीं था
बहारों में इक पल जिया भी नहीं था
तमाशा बनी क्यों हमारी मुहब्बत
अभी इश्क़ हमने किया भी नहीं था
©️ मोनिका मंतशा
गुलों की क़बा को सिया भी नहीं था
बहारों में इक पल जिया भी नहीं था
तमाशा बनी क्यों हमारी मुहब्बत
अभी इश्क़ हमने किया भी नहीं था
©️ मोनिका मंतशा