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10 Mar 2018 · 5 min read

गुलाब

“… वहीं गन्दे में उगा देता हुआ बुत्ता
पहाड़ी से उठे-सर ऐंठकर बोला कुकुरमुत्ता—
“अबे, सुन बे, गुलाब,
भूल मत जो पायी खुशबु, रंग-ओ-आब,
खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट,
डाल पर इतरा रहा है केपीटलिस्ट!
कितनों को तूने बनाया है गुलाम,
माली कर रक्खा, सहाया जाड़ा-घाम …”

महाकवि निराला की कवितायेँ पढ़ते हुए माधव सुबह की चाय का लुत्फ़ ले रहा था। “कुकुरमुत्ता” कविता पढ़ते हुए उसकी नज़र बालकॉनी के गमले में खिले गुलाब की तरफ पड़ी। पांच-छः गमलों में अलग-अलग पौधे लगे थे। तुलसी का पौधा पूरे आँगन में तुलसी की महक बिखेरे हुए था। बाक़ी गमलों में चमेली और अन्य फूल महक रहे थे। गुनगुनी धूप में सुबह की ताज़ा हवा के कारण पर्याप्त नमी थी। बीच-बीच में पंछियों के चहकने का स्वर वातावरण में अमृत घोलता जान पड़ रहा था। राघवी ने अभी-अभी गमलों में पानी डाला था। स्नान के बाद पौधों को पानी डालना, उसका रोज़ का नियम था। वह अन्य गमलों से ज़ियादा गुलाब के गमले का कुछ खास ख्याल रखती थी। इसके उपरान्त वह बालकॉनी में ही एक छोर पर खड़ी होकर अपने गीले बालों में मौजूद पानी को तौलिये से छिटक-छिटक कर निकालने लगी।

“न झटको ज़ुल्फ़ से पानी, ये मोती फूट जायेंगे।” एक पुराने फ़िल्मी गीत की रोमान्टिक पंक्तियाँ स्वतः ही माधव के होंठों से बरबस स्फुटित होने लगी।

“क्या बात है, बहुत रोमांटिक हो रहे हो?” राघवी ने तौलिये से अपने बालों को सहलाते हुए कहा। प्रति उत्तर में माधव कुछ नहीं बोला। बस वह गीत की पंक्तियाँ गुनगुनाता रहा और अब उसने अपनी निगाहें राघवी के चेहरे की तरफ़ केंद्रित कर लीं। इस बीच राघवी के चेहरे पर कई भाव उभरे। अंततः वह माधव की आँखों की तपिश को बर्दास्त न कर सकी। शरमा कर उसने निगाहें नीची कर लीं।

“आखिर ऐसा आज क्या देख रहे हो जी, मुझमें! सुबह-शाम तो मुझे देखते ही रहते हो?” साहसा साहस बटोरकर राघवी ने नैन मटकाते हुए पूछ ही डाला।

“देख रहा हूँ तुम ज़्यादा सुन्दर हो या गुलाब!” माधव ने रोमांटिक होते हुए जवाब दिया, “नहाने के बाद तुम्हारी सुंदरता बढ़ जाती है।”

“सच …” राघवी को मानो माधव के कहे पर विश्वास नहीं हुआ या वह और भी कुछ सुनना चाहती थी।

“सचमुच। लगता है नई नवेली दुल्हन हो अभी भी। अभी निराला की कविता ‘कुकुरमुत्ता’ पढ़ रहा था। इसमें मार्क्स के सिद्धांत सर्वहारा और बुर्जुवा वर्ग की याद हो आई। कॉलेज के दिन भी क्या दिन थे? पार्टी कार्यालय का काम करते थे! पोस्टर लगते थे फुटपाथ की दीवारों पर कॉलेज के साथियों के साथ! भाषण बाज़ी होती थी! कितनी बहस हुआ करती थीं उन दिनों!” कहते हुए माधव की स्मृति में कॉलेज के दिन सजीव हो उठे।

“सारी दुनिया के मजदूरों एक हो जाओ…. तुम्हारे पास खोने के लिए जहालत और ग़ुलामी की बेड़ियों के सिवा कुछ भी नहीं है और पाने के लिए सम्पूर्ण विश्व है!” माधव जो कॉलेज के ड्रामे में कार्ल मार्क्स का रोल कर रहा था, इस संवाद को जिस जोश और तरीक़े से बोला था, पूरा हाल तालियों और सीटियों की आवाज़ों से गूंज गया। माधव ने चोर दृष्टि से प्रथम पंक्ति में बैठी राघवी की तरफ़ देखा, राघवी ने नज़र मिलते ही शर्म से नज़रें झुका लीं। उस रोज़ नाटक तो घण्टे भर में ख़त्म हो गया था मगर प्रेम का जो अंकुर दोनों के हृदय में स्फुटित हुआ था वह शादी हो जाने के बाद अब तक बरक़रार है।

माधव ने निराला की उपरोक्त पंक्तियाँ पुनः ऊँचे सुर में राघवी को फिर से सुना दी और विस्तार से अर्थ समझाने लगा, पर राघवी पता नहीं किस धुन में खोई हुई थी।

“ओ मैडम राघवी जी, ध्यान कहाँ है आपका?” माधव ने राघवी के गाल पर हल्की थपकी मारते हुए कहा।

“तुम्हारे कार्ल मार्क्स वाले रोल को याद कर रही थी, क्या खूब अदायगी की थी आपने उस रोज़!” राघवी ने उसी खुमार में खोये-खोये कहा, “लग रहा था सचमुच कार्ल मार्क्स हमारे सामने आ खड़ा हुआ है!”

“उस रोज़ पहली पंक्ति में बैठी तुम बहुत खूबसूरत लग रही थी! इसलिए बीच-बीच में नाटक से ध्यान हटके तुम्हारी तरफ़ जाता रहा!” माधव ने बिन्दास स्वर में कहा।

“एक बार फिर वही संवाद अपनी बुलन्द आवाज़ में हूबहू वैसे ही सुना दो!” राघवी ने फरमाइश की।

“सारी दुनिया के मजदूरों एक हो जाओ…. तुम्हारे पास खोने के लिए जहालत और ग़ुलामी की बेड़ियों के सिवा कुछ भी नहीं है और पाने के लिए सम्पूर्ण विश्व है!”माधव ने उसी अंदाज़ और तरीक़े से एक बार फिर वही डायलॉग सुना दिया।

“वाह! वाह!!” मिसेज शर्मा ने ऊँचे स्वर में कहा और निचले फ्लोर पर रहने वाले मिस्टर एंड मिसेज शर्मा ने जमकर तालियाँ बजा दीं। यकायक ख़्वाबों और प्रेम की दुनिया से माधव और राघवी यथार्थ के धरातल पर लौटे!

“सॉरी शर्मा जी, आज काफ़ी लम्बे समय के उपरान्त निराला की कविता “कुकुरमुत्ता” पढ़ रहा था, तो पढ़ते-पढ़ते सुर ऊँचा हो गया!” माधव ने सफ़ाई दी।

“मुझे लगा तुम “एक मई” के लिए भाषण क की तैयारी कर रहे हो, क्योंकि तुमने ऊँचे सुर में जो संवाद कहा था वो तो समाजवाद और कार्ल मार्क्स का संवाद है!” शर्मा जी ने हंसते हुए कहा।

“माफ़ी चाहता हूँ!” माधव ने हाथ जोड़कर कहा।

“ओ कोई बात नहीं, लगे रहिये आप लोग, हम मियाँ-बीवी को तो फ़िलहाल ड्यूटी जाना है!” बाय-बाय की मुद्रा में मिस्टर एंड मिसेज शर्मा ने हाथ हिलाया और अपनी बॉलकनी का दरवाज़ा बन्द कर दिया।

हाँ तो मैं तुम्हें निराला की कविता के विषय में कुछ बताना चाहता था राघवी!” बातचीत का क्रम पुनः आरम्भ करते माधव ने कहा, “निराला के अनुसार “कुकुरमुत्ता” कविता में गुलाब शोषणकर्ता है। महाकवि कहते हैं, उसकी यह सुंदरता खाद-पानी को चूसकर बनी है। कइयों को गुलाम बनाया है और माली कर रक्खा है सो अलग। जैसे हम तुम्हारी सुंदरता के माली हैं!”

“निराला जी का गुलाब भले ही शोषण का प्रतीक हो, किन्तु हमारे गमले में खिला गुलाब तो हम दोनों का प्यार पाकर खिला है।” राघवी ने गमले में खिले गुलाब को प्यार से सहलाते हुए कहा।

“ये बात है।” कहकर माधव कुर्सी से उठे और गमले के पास पहुंचकर गुलाब को डाल से तोड़ लिया।

“इसे क्यों तोडा जी!” राघवी ने हैरानी से पूछा।

“अगर ये हमारे प्रेम से उपजा है तो इस गुलाब की असली जगह तुम्हारे बालों में है।” और कहते-कहते ही माधव ने कहे को किये में परिवर्तित कर दिया। राघवी थोड़ा शरमा गई।

“इतनी जल्दी क्या थी . . . अभी दो दिन और गमले में गुलाब को खिला रहने देते!” राघवी ने मन्द-मन्द मुस्कुराते हुए कहा।

“मैडम, बादशाह ज़फ़र ने अपने शेर में क्या ख़ूब कहा है — उम्रे-दराज़ मांग कर लाये थे चार दिन; दो आरज़ू में कट गए, दो इन्तिज़ार में।” माधव ने बड़े अदब से शेर पढ़ा, “कहीं हमारी हालत भी ऐसी न हो जाये मैडमजी। इसी वास्ते आज ही तोड़ डाला आपके प्यारे गुलाब को। इन्तिज़ार और आरज़ू में कहीं हमारी भी ज़िंदगी न कट जाये।”

“मैं टिफिन तैयार करती हूँ। आपको ड्यूटी के लिए देर हो जाएगी!” राघवी ने घडी की ओर इशारा किया।

“कौन कमबख्त …. इतने हसीन पल छोड़कर ड्यूटी जायेगा। आज का दिन अपने प्यारे गुलाब के नाम।” माधव के कहे में इतना नशा था कि राघवी ने माधव की आँखों में देखा तो शरमा कर अपनी आँखें बंद कर ली।

•••

Language: Hindi
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